Spadex मिशन के साथ भारत ने फिर किया कमाल, 7 जनवरी को दोनों स्पेसक्राफ्ट को अंतरिक्ष में जोड़ेगा ISRO
Spadex मिशन के साथ भारत ने फिर किया कमाल, 7 जनवरी को दोनों स्पेसक्राफ्ट को अंतरिक्ष में जोड़ेगा ISRO
इसरो ने अपना महात्वाकांक्षी स्पैडेक्स मिशन लॉन्च कर दिया है। श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से सोमवार रात 10 बजे इसे लॉन्च कर दिया। स्पैडेक्स मिशन के साथ ही भारत डॉकिंग और अनडॉकिंग क्षमता प्रदर्शित करने वाला चौथा देश बनेगा। इस समय दुनिया में सिर्फ तीन देश- अमेरिका रूस और चीन अंतरिक्षयान को अंतरिक्ष में डॉक करने में सक्षम हैं।
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स्पैडेक्स मिशन के साथ भारत ने फिर कमाल कर दिया है। श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से सोमवार रात 10 बजे 44.5 मीटर लंबे ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) -सी60 रॉकेट ने दो छोटे अंतरिक्षयानों चेजर और टारगेट के साथ सफलता की उड़ान भरी। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने कहा,"दोनों अंतरिक्षयान सफलतापूर्वक अलग हो गए हैं। चेजर ओर टारगेट को कक्षा में स्थापित कर दिया गया।"
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अंतरिक्षयानों को वृत्ताकार कक्षा में स्थापित कर दिया गयामिशन निदेशक एम. जयकुमार ने कहा कि मिशन सफल रहा। इसरो प्रमुख एस. सोमनाथ ने कहा,"रॉकेट ने 15 मिनट की उड़ान के बाद अंतरिक्षयानों को 475 किलोमीटर की वृत्ताकार कक्षा में स्थापित कर दिया है। उम्मीद है कि डॉकिंग प्रक्रिया अगले एक सप्ताह में संभवत: सात जनवरी को पूरी हो जाएगी।
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डॉकिंग और अनडॉकिंग क्षमता प्रदर्शित करने वाला चौथा देश बना भारतस्पैडेक्स मिशन के साथ ही भारत डॉकिंग और अनडॉकिंग क्षमता प्रदर्शित करने वाला चौथा देश बनेगा। इस समय दुनिया में सिर्फ तीन देश- अमेरिका, रूस और चीन अंतरिक्षयान को अंतरिक्ष में डॉक करने में सक्षम हैं। अंतरिक्षयान से दूसरे अंतरिक्षयान के जुड़ने को डॉकिंग और अंतरिक्ष में जुड़े दो अंतरिक्ष यानों के अलग होने को अनडॉकिंग कहते हैं।
इसरो ने इस साल की शुरुआत अंतरिक्ष में एक्सरे किरणों का अध्ययन करने वाले मिशन एक्सपोसेट की लॉचिंग के साथ की थी। इसके कुछ ही दिनों बाद अपने पहले सूर्य मिशन 'आदित्य' में कामयाबी हासिल की। अब वर्ष का अंत भी भारत ने ऐसे मिशन की लॉचिंग के साथ किया जो अंतरिक्ष में देश के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को अपने बलबूते हासिल करने के लिए बेहद जरूरी है।
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इन लक्ष्यों में चंद्रमा से नमूने लाना, भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (बीएसएस) का निर्माण शामिल है। विज्ञानियों के अनुसार दोनों अंतरिक्षयान समान गति और दूरी से यात्रा करने के बाद लगभग 470 किमी की ऊंचाई पर साथ जुड़ जाएंगे। आने वाले दिनों में दोनों अंतरिक्षयानों के बीच की दूरी को कम करके उन्हें मिलाने का प्रयास किया जाएगा। गौरतलब है कि लॉचिंग पहले रात 9.58 बजे निर्धारित थी। लॉचिंग को दो मिनट के लिए क्यों टाला गया यह जानकारी नहीं दी गई है। लां¨चग के लिए 25 घंटे की उल्टी गिनती रविवार रात नौ बजे शुरू हुई थी।
बेहद महत्वपूर्ण है यह मिशनयह भविष्य के मानव अंतरिक्ष उड़ान के लिए महत्वपूर्ण तकनीक- अंतरिक्ष में डा¨कग के लिए यह किफायती प्रौद्योगिकी प्रदर्शन मिशन- चंद्रमा पर इंसान को भेजने, चांद से नमूने लाने के लिए आवश्यक - भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन का निर्माण और संचालन में भी होंगे आत्मनिर्भर- इसरो की 2035 तक अपना अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने की योजना- किसी मिशन के लिए एक से अधिक राकेट लांच करने पर भी होगी इस तकनीक की जरूरत
किस तरह हासिल करेंगे सफलतादो अंतरिक्षयान एसडीएक्स01 (चेजर) और अंतरिक्षयान एसडीएक्स02 (टारगेट) को ऐसी कक्षा में रखा जाएगा जो उन्हें एक दूसरे से पांच किमी दूर रखेगी।
बाद में इसरो मुख्यालय के विज्ञानी दोनों अंतरिक्षयानों को नजदीक लाकर पृथ्वी से लगभग 470 किमी की ऊंचाई पर जोड़ेंगे।
दोनों अंतरिक्षयानों में हैं पेलोड।
दोनों अंतरिक्षयानों का वजन 220-220 किलोग्राम है। एसडीएक्स 01 में हाई रिजाल्यूशन कैमरा लगा है।
एसडीएक्स 02 में दो पेलोड मिनिएचर मल्टीस्पेक्ट्रल पेलोड और रेडिएशन मानिटर पेलोड लगे है।
ये पेलोड हाई रिजाल्यूशन तस्वीरें, प्राकृतिक संसाधन निगरानी में मदद करेंगे।
अंतरिक्षयान दो वर्षों तक पृथ्वी की परिक्रमा करेंगे
'सफलता की एक और कविता' रचने की भी होगी काशिशइस मिशन के साथ ही विज्ञानी पीओईएम-4 यानी पीएसएलवी आर्बिटल एक्सपेरिमेंटल माड्यूल-4 के तहत प्रयोग भी करेंगे। भारत तीन बार इस तरह का प्रयोग पहले भी कर चुका है।
इन प्रयोगों के लिए पीएसएलवी-सी60 अपने साथ 24 पेलोड लेकर जा रहा है इनमें 14 विभिन्न इसरो प्रयोगशालाओं से और 10 प्राइवेट विश्वविद्यालयों और स्टार्ट अप से संबंधित हैं। अंतरिक्ष वातावरण में पालक के विकास का अध्ययन करने की योजना है।
डेब्रिस कैप्चर रोबोटिक मैनिपुलेटर, अंतरिक्ष वातावरण में मलबे को कैप्चर करने की क्षमता प्रदर्शन करेगा। पहले इसरो ने पीएसएलवी सी-58 राकेट का इस्तेमाल कर पोएम-3 और पीएसएलवी-सी55 मिशन में पीओईएम-2 का उपयोग करके इसी तरह का सफल प्रयोग किया था।
अंतरिक्ष कचरे की समस्या से निपटने में भी मदद मिलेगीइसरो के पीओईएम मिशन से अंतरिक्ष कचरे की समस्या से निपटने में भी मदद मिलेगी। दरअसल पीओईएम इसरो का प्रायोगिक मिशन है इसके तहत कक्षीय प्लेटफार्म के रूप में पीएस4 चरण का उपयोग करके कक्षा में वैज्ञानिक प्रयोग किया जाता है।
पीएसएलवी चार चरणों वाला राकेट है। इसके पहले तीन चरण प्रयोग होने के बाद समुद्र में गिर जाते हैं और अंतिम चरण उपग्रह को कक्षा में प्रक्षेपित करने के बाद अंतरिक्ष में कबाड़ बन जाता है। पीओईएम के तहत राकेट के इसी चौथे चरण का इस्तेमाल वैज्ञानिक प्रयोग करने में किया जाएगा।
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अंतरिक्षयानों को वृत्ताकार कक्षा में स्थापित कर दिया गयामिशन निदेशक एम. जयकुमार ने कहा कि मिशन सफल रहा। इसरो प्रमुख एस. सोमनाथ ने कहा,"रॉकेट ने 15 मिनट की उड़ान के बाद अंतरिक्षयानों को 475 किलोमीटर की वृत्ताकार कक्षा में स्थापित कर दिया है। उम्मीद है कि डॉकिंग प्रक्रिया अगले एक सप्ताह में संभवत: सात जनवरी को पूरी हो जाएगी।
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डॉकिंग और अनडॉकिंग क्षमता प्रदर्शित करने वाला चौथा देश बना भारतस्पैडेक्स मिशन के साथ ही भारत डॉकिंग और अनडॉकिंग क्षमता प्रदर्शित करने वाला चौथा देश बनेगा। इस समय दुनिया में सिर्फ तीन देश- अमेरिका, रूस और चीन अंतरिक्षयान को अंतरिक्ष में डॉक करने में सक्षम हैं। अंतरिक्षयान से दूसरे अंतरिक्षयान के जुड़ने को डॉकिंग और अंतरिक्ष में जुड़े दो अंतरिक्ष यानों के अलग होने को अनडॉकिंग कहते हैं।
इसरो ने इस साल की शुरुआत अंतरिक्ष में एक्सरे किरणों का अध्ययन करने वाले मिशन एक्सपोसेट की लॉचिंग के साथ की थी। इसके कुछ ही दिनों बाद अपने पहले सूर्य मिशन 'आदित्य' में कामयाबी हासिल की। अब वर्ष का अंत भी भारत ने ऐसे मिशन की लॉचिंग के साथ किया जो अंतरिक्ष में देश के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को अपने बलबूते हासिल करने के लिए बेहद जरूरी है।
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इन लक्ष्यों में चंद्रमा से नमूने लाना, भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (बीएसएस) का निर्माण शामिल है। विज्ञानियों के अनुसार दोनों अंतरिक्षयान समान गति और दूरी से यात्रा करने के बाद लगभग 470 किमी की ऊंचाई पर साथ जुड़ जाएंगे। आने वाले दिनों में दोनों अंतरिक्षयानों के बीच की दूरी को कम करके उन्हें मिलाने का प्रयास किया जाएगा। गौरतलब है कि लॉचिंग पहले रात 9.58 बजे निर्धारित थी। लॉचिंग को दो मिनट के लिए क्यों टाला गया यह जानकारी नहीं दी गई है। लां¨चग के लिए 25 घंटे की उल्टी गिनती रविवार रात नौ बजे शुरू हुई थी।
बेहद महत्वपूर्ण है यह मिशनयह भविष्य के मानव अंतरिक्ष उड़ान के लिए महत्वपूर्ण तकनीक- अंतरिक्ष में डा¨कग के लिए यह किफायती प्रौद्योगिकी प्रदर्शन मिशन- चंद्रमा पर इंसान को भेजने, चांद से नमूने लाने के लिए आवश्यक - भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन का निर्माण और संचालन में भी होंगे आत्मनिर्भर- इसरो की 2035 तक अपना अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने की योजना- किसी मिशन के लिए एक से अधिक राकेट लांच करने पर भी होगी इस तकनीक की जरूरत
किस तरह हासिल करेंगे सफलतादो अंतरिक्षयान एसडीएक्स01 (चेजर) और अंतरिक्षयान एसडीएक्स02 (टारगेट) को ऐसी कक्षा में रखा जाएगा जो उन्हें एक दूसरे से पांच किमी दूर रखेगी।
बाद में इसरो मुख्यालय के विज्ञानी दोनों अंतरिक्षयानों को नजदीक लाकर पृथ्वी से लगभग 470 किमी की ऊंचाई पर जोड़ेंगे।
दोनों अंतरिक्षयानों में हैं पेलोड।
दोनों अंतरिक्षयानों का वजन 220-220 किलोग्राम है। एसडीएक्स 01 में हाई रिजाल्यूशन कैमरा लगा है।
एसडीएक्स 02 में दो पेलोड मिनिएचर मल्टीस्पेक्ट्रल पेलोड और रेडिएशन मानिटर पेलोड लगे है।
ये पेलोड हाई रिजाल्यूशन तस्वीरें, प्राकृतिक संसाधन निगरानी में मदद करेंगे।
अंतरिक्षयान दो वर्षों तक पृथ्वी की परिक्रमा करेंगे
'सफलता की एक और कविता' रचने की भी होगी काशिशइस मिशन के साथ ही विज्ञानी पीओईएम-4 यानी पीएसएलवी आर्बिटल एक्सपेरिमेंटल माड्यूल-4 के तहत प्रयोग भी करेंगे। भारत तीन बार इस तरह का प्रयोग पहले भी कर चुका है।
इन प्रयोगों के लिए पीएसएलवी-सी60 अपने साथ 24 पेलोड लेकर जा रहा है इनमें 14 विभिन्न इसरो प्रयोगशालाओं से और 10 प्राइवेट विश्वविद्यालयों और स्टार्ट अप से संबंधित हैं। अंतरिक्ष वातावरण में पालक के विकास का अध्ययन करने की योजना है।
डेब्रिस कैप्चर रोबोटिक मैनिपुलेटर, अंतरिक्ष वातावरण में मलबे को कैप्चर करने की क्षमता प्रदर्शन करेगा। पहले इसरो ने पीएसएलवी सी-58 राकेट का इस्तेमाल कर पोएम-3 और पीएसएलवी-सी55 मिशन में पीओईएम-2 का उपयोग करके इसी तरह का सफल प्रयोग किया था।
अंतरिक्ष कचरे की समस्या से निपटने में भी मदद मिलेगीइसरो के पीओईएम मिशन से अंतरिक्ष कचरे की समस्या से निपटने में भी मदद मिलेगी। दरअसल पीओईएम इसरो का प्रायोगिक मिशन है इसके तहत कक्षीय प्लेटफार्म के रूप में पीएस4 चरण का उपयोग करके कक्षा में वैज्ञानिक प्रयोग किया जाता है।
पीएसएलवी चार चरणों वाला राकेट है। इसके पहले तीन चरण प्रयोग होने के बाद समुद्र में गिर जाते हैं और अंतिम चरण उपग्रह को कक्षा में प्रक्षेपित करने के बाद अंतरिक्ष में कबाड़ बन जाता है। पीओईएम के तहत राकेट के इसी चौथे चरण का इस्तेमाल वैज्ञानिक प्रयोग करने में किया जाएगा।
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